जी हां, इस परिवार में परदादा से लेकर आज पोते तक सभी अपराधियों को फांसी देने का ही काम करते आ रहे हैं। इस परिवार को कल्लू जल्लाद का परिवार के नाम से भी जाना जाता है। आज इस खानदान में पवन कुमार ही इस विरासत को बड़ी शिद्दत के साथ संभाल रहा है। पवन ही वर्तमान समय में इस परिवार का इकलौता और जीवित वारिस है।

पवन के परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद हुआ करते थे। लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर उनके दादा ने ही लटकाया था। परदादा के बाद उनके दादा कालूराम ने इस विरासत को संभाला। कालूराम के बाद पवन के पिता मम्मू ने और मम्मू के बाद पवन इसे संभाल रहे हैं।


पवन के दादा कल्लू सिंह को फांसी देने में बहुत ही ज्यादा महारथ हासिल था। ऐसा कहा भी जाता है कि उनके जैसा फांसी का फंदा बनाना किसी और के बस की बात नहीं थी। पवन के पिता मम्मू अपने जीवनकाल में कुल 12 अपराधियों को फांसी दी है। पवन ने फंदा बनाने का और प्लैटफॉर्म तैयार करने का काम अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा। अपने बचपन के दिनों से ही पवन दादा के साथ जेल में आता-जाता था और इस काम की हर बारीकी को ध्यान से सीखता था।